सोमवार, 14 सितंबर 2015

एक कविता :हिन्दी दिवस पर


हर शाम अपनी महफ़िल को आबाद करता हूँ
सिर्फ तन्हाई में ही उसको मैं याद करता हूँ
कोई बीच में आये नहीं पूरा ख्याल रखता हूँ
जब भी अपने दिल से दिल का मैं संवाद करता हूँ

कोई क्या जाने क्यों  मेरा अंतर्मन सुलगता है
कभी आग थी दिल में बस अब अंगार पलता है
के कोई जान पाये ना की रहता कौन इस मन में
अघोरी की तरह मल के ह्रदय पे राख़ रखता हूँ

कहना चाहता नहीं किसी से बात मैं मन की
अब तो लोग भी कहने लगे है मुझको थोडा सनकी
मुझे नहीं है कोई चाह शोहरत की या फिर धन की
मैं चाहूँ दोस्त जो पूरी करें कमी एक दर्पण की

मैं शायर हूँ जो महफ़िल में खुल कर गीत गाता है
न सीखी दुनियादारी और नया चलन न भाता है
न जानूं लोग क्या लिखते है, क्यों लिखते है इंग्लिश में
मैं एक हिन्दोस्तानी हूँ सिर्फ  हिंदी से नाता है

मैं हूँ भारत का बेटा हूँ मेरी पहचान हिन्दी है
कई भाषाएँ है इस देश में,पर मान हिन्दी है
यहाँ कुछ लोग अंग्रेजी परस्त है लेकिन
विदेशो तक में इस देश की ज़बान हिन्दी है
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मैंने ये गीत कुमार विश्वास से प्रेरणा लेते हुए लिखा है
शिवराज

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