गुरुवार, 11 दिसंबर 2014

कुछ भी हो सकता है


वक़्त की इच्छा है वो बदल सकता है
खोटा सिक्का भी कहीं चल सकता हैं
उसको ज्यादा सोचना अच्छा नहीं
कभी कोई ख्वाब पल भी सकता है
हर आदमी को शक के दायरे में रखो
कोई भी कुछ भी निकल सकता है
कभी देखा भी है इंसान को रंग बदलते
यूं ही गिरगिट को माहिर समझ रखा है
दुनियां में जीने की अदा को ऐसे समझो
जैसे पानी माटी के साँचे में ढल सकता है
~~~~~शिवराज~~~~~~~~~

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